गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

विक्षिप्त मस्तिष्क अच्छे !!??

देखो ? न्याय में देरी का सिला खूरेंज(ख़ूनी) निकला ,
विक्षिप्त मस्तिष्क अच्छे - अच्छों से तेज निकला

उसने हल निकाला ,खुद, उलझा था जिन सवालों में ,
जिसको ढूंढ पाया जमाना , इन उन्नीस सालों में ,।

ऐसे ही गर चलता रहा न्याय इस जमाने का ।,
जब कोई ओर रास्ता नही मिलेगा न्याय पाने का
,

फिर अपराधी किसी सूरत में नही बच पायेगा ,
गर बच गया भ्रष्ट सिस्टम ही उसे बचाएगा

फिर इक दिन ' कमलेश' ऐसा दौर भी जायेगा ,
खुद ही अपना न्याय करके कोई ''उत्सव '' मनायेगा

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