देखो ? न्याय में देरी का सिला खूरेंज(ख़ूनी) निकला ,
विक्षिप्त मस्तिष्क अच्छे - अच्छों से तेज निकला ।
उसने हल निकाला ,खुद, उलझा था जिन सवालों में ,
जिसको न ढूंढ पाया जमाना , इन उन्नीस सालों में ,।
ऐसे ही गर चलता रहा न्याय इस जमाने का ।,
जब कोई ओर रास्ता नही मिलेगा न्याय पाने का
,
फिर अपराधी किसी सूरत में नही बच पायेगा ,
गर बच गया भ्रष्ट सिस्टम ही उसे बचाएगा ।
फिर इक दिन ' कमलेश' ऐसा दौर भी आ जायेगा ,
खुद ही अपना न्याय करके कोई ''उत्सव '' मनायेगा ॥
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