हम कब के मरगये थे तेरे प्यार मे ,
अदायगी रसमे -जनाज़ा तो है ज़माने की,
अदायगी रसमे -जनाज़ा तो है ज़माने की,
पता चल गया होता बहुत पहले,
पर तूने कसम दी थी ना बताने की ,,
पर तूने कसम दी थी ना बताने की ,,
बन गयी थी जिंदगी एक बेजान बुत जब हमने ,
आहटसुनी थी किसे बेगाने की,,
जिंदगी हो गयी थी मौत पर भारी ,
जब आया था वक़्त ,प्यार मे मिट जाने की,,
आहटसुनी थी किसे बेगाने की,,
जिंदगी हो गयी थी मौत पर भारी ,
जब आया था वक़्त ,प्यार मे मिट जाने की,,
जिंदगी देख कर मरी फिर एक बार ,
जब तेरी बेताबी दिखी परायी बाहों मे सिमट जाने की ,,
'कमलेश' मैने खुद ही मूंद ली आँखें , क्यूँ की ,
तुमने कर दी थी तैयारी मेरे मर जाने की,,
2 टिप्पणियां:
behtreen parastuti...
क्या कहें !
मन को छूने वाली रचना
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