बहुत दिन हुए उनको देखे हुए ,
गली में निकलते कंकर फेंके हुए ,
मुंह ऊपर उठा जरा मुस्करा देना ,
देख लेती उनको बिना देखे हुए ,
हर खट-खट में उनकी पद -चाप सुनती ,
वो ही है !जान लेती ,बिना देखे हुए ,
ना जाने कहाँ गुम हुए ! वो बेदर्द मौसम ,
महसूस ही कर लेती उनको बिना देखे हुए ,
‘कमलेश’ ऐसी चाहत की कुछ तो बात होगी !
ता उम्र काट दी बिना उनको देखे हुए ॥
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