मंगलवार, 15 जून 2010
हम कैसे भुला दें जहन से, ....!!!
हम कैसे भुला दें जहन से, भोपाल कांड को ,
जिसने हिला के रख दिया ,पूरे ब्रह्माण्ड को ॥
भोपाल मे इंसानी लाशों के, अम्बार लगे थे ,
बुझ गए जीवन दिए जो, अभी-अभी जगे थे ॥
कोई किसी का ,कोई किसी का ,रिश्ता मर गया ,
जिंदगी समेटने की कोशिश मे ,सब कुछ बिखर गया ॥
जिनकी आँखों की गयी रौशनी , जीने की भूख गयी ,
खिली हुई कुछ उजड़ी कोखें , कुछ कोखें पहले सूख गयी ॥
सालों बाद स्मृत पटल पर, यादें धुंधली नही हुई हैं ,
भयावह मंजर से अब भी '' उसकी आँखें खुली हुई हैं''॥
इन्हें न्याय की दहलीज से,बस तिरस्कार मिला ,
कैसे -कैसे मिली हमदर्दी ,कैसा ''राज-सत्कार मिला ॥
कौन सहलाये इन मजलूमों की ,तन मन की चोटों को ,
गिनने मे रहीं व्यस्त -सरकारे ,लाशों और वोटों को ॥
सब दलों के नेता देख रहे हैं ,इसे राजनीति के दर्शन मे ,
जब की कोई फर्क नही है ''अफजल ''कसाब 'और ANDERSON मे ॥
अगर ''कमलेश '' नही न्याय -सुरक्षा पूरा सरकार करेगी ,
क्या फिर कहीं दूसरे, भोपाल -कांड का इंतजार करेगी ॥
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3 टिप्पणियां:
मार्मिक रचना....
लिखते रहिये........शुभकामनाएं.
समसामयिक विषयों पर लिखी बहुत ही सम्वेदनशील और भावुक कर देने वाली अभिव्यक्ति..
रोयो होगा अम्बर भी
धरती ने ना जाने कितने
आंसू बहाए होंगे
देख निरीह बचपन को
जो पड़ा हुवा था
गोद में
निःश्वास
ना जाने कितनी
रोई होगी माँ
सिहर उठती है
रूह
अब भी
सामने आते ही मंज़र वो
बरबस आँखे
आसमान को तकती
कहती है
काश ये हादसा ना हुवा होता!
आपकी कविता मन को अन्दर तक द्रवित कर गई....साधुवाद !!
aapki rachna ne ek baar fir se bhopal-kand ki yaad dila kar rongate khade kar diye.
waqai vo dil ko dahala dene wali ghatana hai.bahut hi marmik lagi ye gazal.
poonam
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