मेरी जिन्दगी में इतने झमेले ना होते
गर तुम मेरे जज्बातों से खेले ना होते ,
बहुत पर खुशनुमा थी मेरी यह जिन्दगी
गर दिखाए हसीं- ख्वाबों के मेले न होते ,
रफ्ता-रफ्ता चल रहा था कारवां जिन्दगी का
दुनिया की इस महफिल में हम अकेले न होते ,
''कमलेश'' ना लुटता दिले- सकूं मेरा कभी
गर मेरी नजरों के सामने ,तेरे हाथ पीले ना होते ,
हमेशा ही कहर बरपा है इश्क पर जमाने का
राहें फूलों की होती कांटे भी न नुकीले होते
6 टिप्पणियां:
nice.
इश्क नामुराद चीज़ ही ऐसी है
रफ्ता-रफ्ता चल रहा था कारवां जिन्दगी का
दुनिया की इस महफिल में हम अकेले न होते ...
जी नहीं आप बिलकुल अकेले नहीं हैं ....
शब्द आप के साथ हैं .....
जब आप शब्दों की मित्रता स्वीकार कर लेंगे तो कभी भी अपने आप को अकेला नहीं पाओगे ।
कभी समय मिले तो 'हिन्दी हाइकु' बलॉग पर जरूर आना...
'शब्दों के उजाला' की तरफ से .....
लिंक है....
http://hindihaiku.wordpress.com
हरदीप
ये रचना तो पढ़ी-सुनी है. शायद आपकी बज़ पर !!
बेहतरीन रचना.
nice........
www.anaugustborn.blogspot.com
prtyek pankti ati sundar........bahut ahii achchha ,............badhai
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