मंगलवार, 6 जुलाई 2010


मेरी जिन्दगी में इतने झमेले ना होते
गर तुम मेरे जज्बातों से खेले ना होते ,


बहुत पर खुशनुमा थी मेरी यह जिन्दगी
गर दिखाए हसीं- ख्वाबों के मेले होते ,


रफ्ता-रफ्ता चल रहा था कारवां जिन्दगी का
दुनिया की इस महफिल में हम अकेले होते ,


''कमलेश'' ना लुटता दिले- सकूं मेरा कभी
गर मेरी नजरों के सामने ,तेरे हाथ पीले ना होते
,


हमेशा ही कहर बरपा है इश्क पर जमाने का
राहें फूलों की होती कांटे भी नुकीले होते

6 टिप्‍पणियां:

सूबेदार ने कहा…

nice.

sonal ने कहा…

इश्क नामुराद चीज़ ही ऐसी है

Shabad shabad ने कहा…

रफ्ता-रफ्ता चल रहा था कारवां जिन्दगी का
दुनिया की इस महफिल में हम अकेले न होते ...

जी नहीं आप बिलकुल अकेले नहीं हैं ....
शब्द आप के साथ हैं .....
जब आप शब्दों की मित्रता स्वीकार कर लेंगे तो कभी भी अपने आप को अकेला नहीं पाओगे ।

कभी समय मिले तो 'हिन्दी हाइकु' बलॉग पर जरूर आना...
'शब्दों के उजाला' की तरफ से .....

लिंक है....
http://hindihaiku.wordpress.com


हरदीप

E-Guru _Rajeev_Nandan_Dwivedi ने कहा…

ये रचना तो पढ़ी-सुनी है. शायद आपकी बज़ पर !!
बेहतरीन रचना.

VIVEK VK JAIN ने कहा…

nice........

www.anaugustborn.blogspot.com

Anamikaghatak ने कहा…

prtyek pankti ati sundar........bahut ahii achchha ,............badhai