गुरुवार, 16 जून 2011

वही हुआ विश्वासघात जिसका सबको अनदेसा था ,
था प्रारम्भ में मिल गया ,उनका कुटिल संदेशा था

आश्वासनों के दम पर ये वर्षों कितने खेल गए ,
आज़ादी ,जनता ,नैतिक मूल्य लगाने तेल गए

कोई[नेता] नही चाहेगा की जनता मुझे सवाल करे ,
क्यों? कसाई चाहेगा की ''बकरा'' उसे हलाल करे ,

एक दिन भीख मांगने से ,पांच वर्षों का ताज मिले ,
जिनके बस एक इशारे से ''राम लीला मैदान ''हिले ,

जब इतनी ताकत सत्ता की, हो जिनके हाथों में ,
क्या मुश्किल था निकालना वक्त बे-मतलब की बातों में ,

इनको याद रहा है अब बाबा राम देव का अनशन ,
उसी तर्ज़ पर ये शायद लिखा जा रहा है ''राज-प्रहसन'',

पता नहीं अब ''अन्ना''के अनशन का क्या हश्र होगा ,
कौरवों पर होगी विजय ''अन्ना - अभिमन्यु पर फख्र होगा ,

कमलेश' गर अपमानित कर पालें ,विजय की भ्रान्ति होगी ,
अन्ना' तुम बढे चलो अब इस देश में विकट क्रांति होगी

2 टिप्‍पणियां:

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" ने कहा…

आश्वासनों के दम पर ये वर्षों कितने खेल गए ,
आज़ादी ,जनता ,नैतिक मूल्य लगाने तेल गए ॥


karaara yangya....

S.N SHUKLA ने कहा…

Very nice post.