गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

तेरी हसरत थी जो..!!!

तेरी हसरत थी जो दिल को ,वह खत्म हो गयी ,
अब वादे-वफा निभानी बस रस्म हो गयी

जी जाते गर तूने, रस्मे -उल्फत निभायी होती ,
बर्बादी की जगह, जिन्दगी की राह दिखाई होती

कहाँ ? देखे थे इन आँखों ने बहारों के सपने ,
तपती रेत के सहरा में फुहारों के सपने

उम्मीदों के समन्दर में ढूँढा था ,तेरे प्यार का मोती ,
सीप 'संग 'को समझ लेता, गर तुम साथ होती

उजड़ जाते गर बसने से पहले ,
रो लेती आँखें हंसने से पहले

दिल टूटता ,अरमां तार-तार होते ,
तुम बेवफा होती , हम बे ऐतबार होते

कुदरत करती रही हमेशा, बेरुखी मेरे साथ में ,
अब भी जिन्दगी की डोर, थमा दी तेरे हाथ में

ये है मेरी किस्मत ,नही किसी का दोष है ,
इस मुकाम पर देखो ?कुदरत भी खामोश है

''कमलेश'' क्या कहेगा जमाना, इस बात पर ,
जिन्दगी लगा दी है ,जिन्दगी की बिसात पर

3 टिप्‍पणियां:

कडुवासच ने कहा…

उजड़ जाते गर बसने से पहले ,
रो लेती आँखें हंसने से पहले ।
.... बहुत खूब !!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

''कमलेश'' क्या कहेगा जमाना, इस बात पर ,
जिन्दगी लगा दी है ,जिन्दगी की बिसात पर ॥

सुन्दर रचना के लिए बधाई!

संजय भास्‍कर ने कहा…

''कमलेश'' क्या कहेगा जमाना, इस बात पर ,
जिन्दगी लगा दी है ,जिन्दगी की बिसात पर ॥

इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....