मेरा तन- मन
मेरा तन- मन उचाट क्यूँ है? इस पूरे जहान से ,
चिड़ियों ने भी समेट लिये , घोंसले मेरे मकान से ।!
इंसानों में खुदगर्जी हो गयी ,इस कदर हावी ,
जड़ भी कहने लगे ,हम अच्छे है इस इन्सान से ।!
फिजां की इन सरसराती हवावों में है ,बू साजिश की
, इनकी दोस्ती से है कहीं अच्छी ,दुश्मनी तूफ़ान से ।!
कितना भी अफ़सोस कर लो, इस जमाने नीयत पर ,
कितने बेगुनाहों को गुजारा है ,इसने अपने इम्तिहान से ।!
'कमलेश 'अब भी बहुत कुछ है यहाँ, बाकी कहने को ,
पहले अपनी धरती संवारो ,फिर शिकवा करो आसमान से ।!!
3 टिप्पणियां:
हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
संजय जी,
एक बहुत ही अच्छी रचना, बहुत संवेदना भरी, काफिया लाजवाब
shaayad ek-aad jagah spelling mistake hai. yadi hain to sudhaar len. jaise ki -- 'is jamaane "kii" niyat par' - me.
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