रविवार, 18 अप्रैल 2010

हसरतों को जहाँ रोज,...!!!

कमलेश वर्मा
हसरतों को जहाँ रोज, मरते-बेहाल देखा है ,
बे-मतलब अपना चेहरा, लाल करते देखा है

जो करके आये हैं , उसका उनको ख्याल है,
मै तो था बे-कसूर .!ये मलाल करते देखा है

करें भी क्या इनके बस में, है भी नही ,
यादों के नश्तरों को, हलाल करते देखा है ,।

कुछ ने तो कर लिया वक्त से समझौता ,
कुछ बिना वजह हमेशा बवाल करते देखा है

जो नही दे पाते अपने आप को उत्तर ,
उसे औरों से सौ सवाल ? करते देखा है

''कमलेश'' यहाँ की दुनिया बड़ी अजीब है ,
कुछ को रोते हुए ,कुछ को धमाल करते देखा है

4 टिप्‍पणियां:

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

बे-मतलब अपना चेहरा, लाल (समीर चच्चा आउतय होइहंय)
कुछ बिना वजह हमेशा बवाल करते देखा है (अभी बज़ में यही तो देखा है)
कुछ को रोते हुए ,कुछ को धमाल करते देखा है ( हम तो धमाली हैं, रोने का काम तो वामपंथी रुदालियों का है.)
बहुत ही मस्त रचना है. :)

संजय भास्‍कर ने कहा…

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

जो नही दे पाते अपने आप को उत्तर ,
उसे औरों से सौ सवाल ? करते देखा है ।
bahut hi sahi baat kahi hai aapne.
poonam

मेरे भाव ने कहा…

hello sir, pahli baar aapka blog pada. behtarin rachnaye.....