- भाव विह्वल सजल नैनो में, अवसाद भरा ,
- कांपती है आत्मा थर्राती है नभ-धरा ।
- कैसी अनहोनी घटित हुई ,है जीवन में ,
- मात्र पात के स्पंदन से भी है ,ये!मन डरा ,
- सदियों की बातें करता रहा मै सदा ,
- सब कुछ विलुप्त हो गया ,
- बस पलक झपकी थी जरा ,
- क्यों नहीं भाता कोई आश्वासन मन को ,
- अब सम्वेदना का स्वर भी लगता है खुरदरा ,
- काश !पढ़ पाते उस के लिप्यांतर को कभी ,
- तो आज न होता इतना खुद का मन भरा ,
- अब भी वक्त है सोच ले ये नादाँ ''कमलेश ''
- बस नाम का करले ...सौदा इकदम खरा-खरा ॥
3 टिप्पणियां:
kash............man bhara
bahut hi bhavpurn rachna hai..... badhai......
Bahut sundar bhavanaon aur samvedanaon se bharpoora rachana----.
काश !पढ़ पाते उस के लिप्यांतर को कभी ,
तो आज न होता इतना खुद का मन भरा ,
dil ki gahrayee se nikle ye bhav dil ko choo jate hai. bahut khoob..
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