इन आँखों का क्या गुनाह था ,
सिर्फ़ नज़र ही तो मिलाया था ,
कसूर तो उस वक्त का था ,
जिसने दो दिलो को मिलाया था ,
जब मिली दोनों की आँखे तो ,
इस दिल ने भी मोहाब्बत का चिराग जलाया था ,
आँखों ने इशारा ही तो किया था ,
फिर क्यों इस दिल ने हलचल मचाया था ,
आँखों ने देखे सपने तो दिल ने किए वादे ,
जब टूट गई सारी कश्मे वादे ,
तो इसी दिल ने रोना सिखाया था ,
छूप छूप कर रोया करता था ,
ये दिल जब अकेला हुआ करता था ,
पर उस रोने में भी आखिर ,
आंशु तो आँखों ने ही बहाया था .
4 टिप्पणियां:
सारा कसूर आँखों का ही है
"गुनाह ये करती है दिल बदनाम होता है "
आँख हैं या नींद की
दो गोलियाँ ।
दृष्टि मिलते ही
सुला देते हैं लोग ।
शिकवा किस बात का . यह तो होना ही था ।
रचना प्रशंसनीय ।
हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।
सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
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