धोका था नज़रों का वो इसके सिवा कुछ भी नहीं।।
समझा था क़ैद है तक़दीर मेरी मुट्ठी में;
रेत के दाने थे वे इसके सिवा कुछ भी नहीं।
मैं समझता रहा एहसास जिसे महका सा;
एक झोंका था हवा का वो और कुछ भी नहीं।
मैं समझता हूँ जिसे जान,जिगर,दिल अपना;
मुझे दिवाना वो कहते हैं और कुछ भी नहीं।
आजकल प्यार मैं अपने से बहुत करता हूँ;
होगा ये ख़्वाब और इसके सिवा कुछ भी नहीं।
लगा था रोशनी है दर ये मेरा रोशन है;
थी आग दिल में लगी इसके सिवा कुछ भी नहीं।
तेरे सिवाय जो कोई बने महबूब मेरी ;
बने तो मौत बने इसके सिवा कुछ भी नहीं।।
2 टिप्पणियां:
wah!
man kibat kahne ka aapka apna andaz,,uttam rchna
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