जिंदगी के झंझावातों से निकल जाना चाहता हूँ.
शून्य की गोद मे बिल्कुल पिघल जाना चाहता हूँ..
कुच्छ भी नही है उस शून्य के उस पार, ...
कुच्छ भी नही है उस शून्य के उस पार, ...
लेकर अपने अस्तित्व को बिखर जाना चाहता हूँ,,
यह जिंदगी है घूमती उस शून्य की तरह ,
पता नही मैं किधर जाना चाहता हूँ,,
संवेदनाओं की धृोहर जो दी है आपने ,
उनको लेकर ना इधर ना उधर जाना चाहता हूँ!!
यह जिंदगी है घूमती उस शून्य की तरह ,
पता नही मैं किधर जाना चाहता हूँ,,
संवेदनाओं की धृोहर जो दी है आपने ,
उनको लेकर ना इधर ना उधर जाना चाहता हूँ!!
चित्र साभार ...राज भाटिया जी
4 टिप्पणियां:
यह जिंदगी है घूमती उस शून्य की तरह ,
पता नही मैं किधर जाना चाहता हूँ,,
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया...... बहुत सुंदर ....रचना....
apki kabita bahut acchhi hai.
भावनाओं को बहुत सुन्दर शब्द दिए है
राज भाटिया जी का चित्र सुंदर है।भाटिया जी को अच्छी तस्वीर उतारने के लिए बधाई!
*झनझावतोँ नहीँ
झंझावातोँ लिखिए।
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