चारो ओर यह आतंक का साया ,
यह कहाँ से आया है ॥?
जमीं पर ये खून के छींटे ,यत्र -तत्र छितराया ...
यह कहाँ से आया है ?
हक मांगने के तरीके ओर बहुत हैं ,
यह तरीका किसने सिखलाया .है ॥?
जैसे जीत कर आया है जंग ..
जब की इसने -उसने भाई का ही खून बहाया .है ..!!
मूल में कोई नहीं जाना चाहता है ..
इन दोनों को किसने बरगलाया है ॥?
समस्या खत्म तो क्या होगी ?
कौन जाने ,जब बन गया यही दोनों का सरमाया है ।
मरेंगे बेटे -बाप और पति किसीके ,
उठेगा जिनके सर उपर साया है ॥?
''कमलेश'' क्यों नही समझते दोनों तरफ ,
अब तक किस ने क्या पाया है ..!!?
4 टिप्पणियां:
कल से मन व्यथित है ...शायद गाँधी जी की जरूरत फिर से है ..हिसा से कुछ नहीं हासिल होने वाला
इसी विषय से कुछ पंक्तिया मेरे मन से भी निकली
http://sonal-rastogi.blogspot.com/2010/04/blog-post_1343.html
bahut hi acche topic par
sundar rachna .....abhar
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
कमलेश जी सासमयिक रचना के लिए बधाई. रही वात इन कातिल गद्दारों की तो हमारा मानना है अगर ये कातिल किसी अच्छे मकसद के लिए लड़ र रहे होते तो इन्हें समझाया जा सकता था पर जब ये चीन के इसारे पर नाच रहे हैं भारत को नुकशान पहूंचाने के लिए तो भला इन्हें कौन समझा सकता है। इनका इलाज वही है जो गद्दारों का होता है।
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